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Jeevan
स्त्री और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं। किसी पुरुष के जीवन में स्त्री का प्रवेश हुए बिना उसका जीवन सम्पूर्ण नहीं हो सकता है। इसी प्रकार स्त्री की उड़ानों की आकांक्षा पुरुषों से ही जुड़ी रहती है, जिसे वह जीवनसाथी एक हमसफ़र के रूप में देखती है। पुरुष प्रधान समाज में पुरुषों की प्रधानता ही नारी अपमान का कारण है? हिंदू मान्यताओं के अनुसार प्रधानता के संदर्भ में स्त्री और पुरुष को चिन्हित नहीं किया गया है।
शिव और शक्ति में प्रधानता के विषय पर हमारे समाज में कभी किसी प्रकार का कोई प्रश्नचिन्ह नहीं उठता। पर इतना वर्णन जरूर मिलता है कि पति की सेवा ही स्त्री का श्रेष्ठ धर्म है, यही उसका सौभाग्य है। क्या केवल इसलिए पुरुष प्रधान हो जाता है? इस सोच की मानसिकता ज्यादातर पुरुषों में होती है। कर्तव्य निर्वहन से किसी के प्रतिष्ठा में बढ़ोतरी या गिरावट नहीं आती है। जिस तरह माँ के गोद में सुखद छांव का आनंद की अनुभूति जिसका कोई विकल्प नहीं, जिस ममता का ऋण सदैव समाज में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति महसूस करता है।
प्रधानता के सन्दर्भ में हम इसे एक दृश्य में समझ सकते हैं। वह माँ काली का विराट स्वरूप जिनकी क्रोध की ज्वाला को शांत करने के लिए स्वयं देवों के देव महादेव, महाकाल उनके चरणों के समक्ष आकर लेट गए थे। तत्पश्चात माँ काली की जिह्वा बाहर आ जाती है। इस दृश्य को ध्यान से देखने से स्त्री और पुरुष की बीच की प्रधानता के विषय से पर्दा उठ जाता है। परमेश्वर यहाँ विनम्रता से शक्ति के क्रोध पर विजय प्राप्त करते हैं, आदेश, बलपूर्वक या विरोध से नहीं।
माँ काली की जिह्वा बहार आना यह दर्शाता है कि पति स्वरूप परमेश्वर के सम्मान को आहत, आत्मग्लानि पुनः उन्हें वास्तविक नारी स्वरूप में आने को विवश करता है। शिव रूप पति का सम्मान स्त्री के लिए सर्वोपरि है और शक्ति मानक नारी के साथ विनम्रता, यही स्त्री और पुरुष की मर्यादित प्रधानता है।
समाज में हो रहे नारी पर अत्याचार इसके लिए पुरुष की प्रधानता नहीं, उसकी सोच और मानसिकता जिम्मेदार है। सांसारिक जीवन में आने वाली कई तरह की चुनौतियां, विपरीत परिस्थितियों में अपने परिवार के प्रति कर्तव्य, रक्षा, इज़्ज़त, सम्मान बनाए रखना, यह पुरुष का परुषार्थ है, जिसमें समाज में नारी सुरक्षा, उसका सम्मान, संरक्षण की नींव को कायम रखता है।
साहस का दूसरा नाम ही पुरुष है, जिसकी शक्ति स्रोत नारी है। ऐसे पुरुष केवल शारीरिक रूप से ही पुरुष होते हैं, जो साहस नहीं अपनी कमजोरी का परिचय देते हैं। कर्म नहीं काम को पसंद करते हैं, जिनके अंदर प्रेम नहीं केवल वासना है। संयम, संबंध, सहमती, धैर्य, एकाग्रता, इन्हें विचलित करता है। तभी उसे पुरुष से शैतान, इंसान से हैवान बनाता है।
नारी सम्मान को पुरुषों से खतरा नहीं, यह वह सोच और मानसिकता है, जो स्वयं नारी होते हुए भी नारी का अपमान करता है। बेटे की चाहत मे माँ के गर्भ मे पल रही नन्हीं सी जान को मार देना, इस पाप में महिलाओं की सहभागी दुर्भाग्य है। संतान ईश्वर की अनमोल भेंट है। बांझपन महिलाओं के लिए इस कदर अभिशाप बन गया है कि इसमें महिला द्वारा ही महिलाओं को ज्यादा प्रताड़ित किया जाता है, इसमें पुरुषों के दोष को भी नजर अंदाज़ कर दिया जाता है।
जन्म और मृत्यु एक संयोग है। पति की आकस्मिक मृत्यु के पश्चात डायन कहकर कोई और नहीं, उस घर की महिला सदस्य उसका तिरस्कार करती है। केवल मन की सुंदरता को देखकर पुरुष महिला को अपनी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार ले, पर स्वयं नारी की नजरों में उस नवयुवती की देह सुंदरता, कद-काठी की प्राथमिकता नारी उपहास का ही कारण बनता है।
अतः पुरुष के लिए नारी वरदान हैं और पुरुष का सम्मान नारी धरोहर। नारी और पुरुष के समागम में पूरी सृष्टि सहमाहित है। अपमान का कारण, नर और नारी नहीं, हमारे अंदर का वह ज्ञान है, जिसके दरवाजे एक मोक्ष और दूसरा नर्क के द्वार पर खुलता है।
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